राकेश दुबे@प्रतिदिन। एक नया प्रयोग जिसे ‘फ्लेक्सी फेयर सिस्टम’ नाम दिया गया है। इससे एयरलाइन्स की तर्ज पर मांग बढ़ने के साथ किराया महंगा होगा। संभव है, इस वृद्धि के पीछे तर्क यह हो कि ऐसी ‘प्रीमियम’ ट्रेनों में यात्रा करने वाले तो कोई भी बोझ उठा लेंगे। लेकिन क्या यह तर्क सही है? हां,
यह जरूर होगा कि आम यात्री इतनी महंगी यात्रा के बदले हवाई जहाज का रुख करने की सोचेगा और अपना बोझ थोड़ा और बढ़ा लेगा। संभव है कि कई बार उसका हवाई सफर रेल से सस्ता भी हो जाए। रेलवे ने बड़े लोगों के दर्जे यानी एसी फस्र्ट क्लास को जरूर बख्श दिया है। फ्लेक्सी
फेयर सिस्टम का यह प्रयोग रेलवे के इतिहास में एक नया अध्याय है। इस वृद्धि में एक और वृद्धि तब दिखाई देगी, जब ट्रैवल एजेंट भी उपलब्धता का हवाला देकर अपने कमीशन का स्लैब बढ़ाएंगे।
फरवरी में जब रेल बजट पेश हो रहा था, तब बात हुई थी कि सारा ध्यान यात्री सुविधाएं बढ़ाने और ट्रेनों की बेढ़गी चाल सुधारने पर होगा। न सुविधाएं उस तरह बढ़ीं, न ट्रेनों की चाल बदली। चलती ट्रेन में एक ट्वीट पर बच्चे के लिए दूध पहुंचाने का लुभावना सच तो बार-बार उछला, लेकिन उसी ट्वीट पर ट्रेन लेट की शिकायत पर कोई कार्रवाई नही हुई। ट्विटर पर
पैन्ट्री वालों की मनमानी की शिकायतों का भी जनता को संतोषजनक जवाब नहीं मिला। ट्रेनों में अच्छा खाना देने का वादा भी पूरा नहीं हुआ। कई वीआईपी ट्रेनों में भी पैन्ट्री कार में मनमानी वसूली अब रीति बन चुकी है। पहले वेज और नॉन वेज थाली परोसी जाती थी और उसका मूल्य भी थाली के ही हिसाब से लिया जाता था। कहने को तो अब भी यही परंपरा है, फर्क सिर्फ इतना आया है कि अब पूछने पर तो वेंडर वेज या नॉन वेज थाली देने की बात करता है, लेकिन बिल मांगने पर उसमें कम से कम पांच से 10 आइटम का अलग-अलग दाम लिखकर लाता है। पैन्ट्री वाले इसे अलाकार्टे का नाम देते हैं। और मनमानी कीमत वसूलते हैं |
महंगी होती रेल के दौर में आम यात्री का यह दर्द कौन समझेगा? फिलहाल तो कोई नहीं दिखाई देता। हां, यह जरूर दिखता है कि खान-पान की गुणवत्ता के नाम पर अगले कुछ दिनों में शायद सभी ट्रेनों से पैन्ट्री कार हट जाएं और ऑन डिमांड सप्लाई के नाम पर खान-पान का मामला कुछ निजी कंपनियों को सौंप दिया जाए। यानी रेलवे के कर्ताधर्ता हम रेल यात्रियों को एक और अतिरिक्त बोझ उठाने के लिए मजबूर कर दें।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703 rakeshdubeyrsa@gmail.com
यह जरूर होगा कि आम यात्री इतनी महंगी यात्रा के बदले हवाई जहाज का रुख करने की सोचेगा और अपना बोझ थोड़ा और बढ़ा लेगा। संभव है कि कई बार उसका हवाई सफर रेल से सस्ता भी हो जाए। रेलवे ने बड़े लोगों के दर्जे यानी एसी फस्र्ट क्लास को जरूर बख्श दिया है। फ्लेक्सी
फेयर सिस्टम का यह प्रयोग रेलवे के इतिहास में एक नया अध्याय है। इस वृद्धि में एक और वृद्धि तब दिखाई देगी, जब ट्रैवल एजेंट भी उपलब्धता का हवाला देकर अपने कमीशन का स्लैब बढ़ाएंगे।
फरवरी में जब रेल बजट पेश हो रहा था, तब बात हुई थी कि सारा ध्यान यात्री सुविधाएं बढ़ाने और ट्रेनों की बेढ़गी चाल सुधारने पर होगा। न सुविधाएं उस तरह बढ़ीं, न ट्रेनों की चाल बदली। चलती ट्रेन में एक ट्वीट पर बच्चे के लिए दूध पहुंचाने का लुभावना सच तो बार-बार उछला, लेकिन उसी ट्वीट पर ट्रेन लेट की शिकायत पर कोई कार्रवाई नही हुई। ट्विटर पर
पैन्ट्री वालों की मनमानी की शिकायतों का भी जनता को संतोषजनक जवाब नहीं मिला। ट्रेनों में अच्छा खाना देने का वादा भी पूरा नहीं हुआ। कई वीआईपी ट्रेनों में भी पैन्ट्री कार में मनमानी वसूली अब रीति बन चुकी है। पहले वेज और नॉन वेज थाली परोसी जाती थी और उसका मूल्य भी थाली के ही हिसाब से लिया जाता था। कहने को तो अब भी यही परंपरा है, फर्क सिर्फ इतना आया है कि अब पूछने पर तो वेंडर वेज या नॉन वेज थाली देने की बात करता है, लेकिन बिल मांगने पर उसमें कम से कम पांच से 10 आइटम का अलग-अलग दाम लिखकर लाता है। पैन्ट्री वाले इसे अलाकार्टे का नाम देते हैं। और मनमानी कीमत वसूलते हैं |
महंगी होती रेल के दौर में आम यात्री का यह दर्द कौन समझेगा? फिलहाल तो कोई नहीं दिखाई देता। हां, यह जरूर दिखता है कि खान-पान की गुणवत्ता के नाम पर अगले कुछ दिनों में शायद सभी ट्रेनों से पैन्ट्री कार हट जाएं और ऑन डिमांड सप्लाई के नाम पर खान-पान का मामला कुछ निजी कंपनियों को सौंप दिया जाए। यानी रेलवे के कर्ताधर्ता हम रेल यात्रियों को एक और अतिरिक्त बोझ उठाने के लिए मजबूर कर दें।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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