Saturday, December 10, 2016

यह लड़ाई भारत के भाग्य को बदलने की है। यह लड़ाई भ्रष्टाचार और काले धन को मिटाने की है। ...तो अब मोदी जी को देश के किस चौराहे पर बुलाया जाए?

पहले दिन यानी 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान होते समय ज्यादातर लोगों को लगा (जिनमें कई घोषित मोदी विरोधी भी थे) कि यह एक अच्छा कदम है। वजह यह थी कि जिस तरह से खुद प्रधानमंत्री ने आगे आकर राष्ट्र को संबोधित करते हुए नोटबंदी की घोषणा की थी, उससे स्वाभाविक तौर पर माना जा रहा था कि सरकार ने घोषणा से पहले सारी जरूरी तैयारियां पूरी कर ली हैं। हालांकि कांग्रेस ने तब भी इसे मोदी का नाटकीयता प्रेम करार दिया था, लेकिन तब इसे विरोध के लिए विरोध माना गया।
24 घंटा होते-होते यह आशंका गहराने लगी कि सरकार ने पर्याप्त तैयारी नहीं की। पांच सौ और हजार के नोट खत्म करके दो हजार का नोट लाने की घोषणा बता रही थी कि सरकार की योजना में बुनियादी गड़बड़ी है। उसके बाद यह पता चला कि दो हजार के नोट एटीएम मशीन की साइज के अनुरूप नहीं हैं, इसलिए वे मौजूदा स्वरूप में एटीएम मशीनों से नहीं निकाले जा सकते। चूंकि नोट काफी संख्या में छप कर तैयार थे, उनका आकार नहीं बदला जा सकता था, इसलिए हड़बड़ी में यह तय हुआ कि मशीन को ही नोट के नए आकार के अनुरूप बनाया जाएगा।
यह जूता खरीदने के बाद पैर को उसके साइज के हिसाब से ‘अजस्ट’ करने का क्लासिक उदाहरण था।मगर, प्रधानमंत्री सहित उनकी पूरी भक्त मंडली यही गाने में मस्त थी कि गोपनीयता बहुत जरूरी थी और ये पूरा प्लान बेहद गोपनीय रखा गया, किसी को हवा तक नहीं लगने दी गई। बस इसी एक तर्क के सहारे आम जनता को हो रही दुख-तकलीफों को, यहां तक कि मौतों को भी जायज ठहराने की कोशिश की जाती रही। कहा गया, जो भी हुआ देश के लिए हुआ। काला धन, भ्रष्टाचार, फर्जी नोट, आतंकवाद आदि तमाम बुराइयों को इससे जोड़ दिया गया।
यह विशुद्ध रूप से देशवासियों को बेवकूफ बनाने का अभियान था, लेकिन मोदी भक्तों का सामूहिक कीर्तन इतने जोर-शोर से जारी था कि आम जनता ठंडे दिमाग से सोचने का मौका नहीं पा रही थी। इस बीच दो हजार के नए नोटों की शक्ल में फर्जी नोट बरामद होने लगे, नए नोटों की लाखों की गड्डियां उन्हीं बीजेपी नेताओं के पास से पकड़ी जाने लगीं जो गला फाड़-फाड़ कर देश के लिए त्याग करने का ऐलान कर रहे थे और बैंककर्मियों के भ्रष्टाचार के किस्से भी सामने आने लगे। यहां तक कि धीरे-धीरे लगभग सारा काला धन बैंकों में पहुंच गया। सरकार का अनुमान था कि करीब तीन लाख करोड़ रुपये वापस नहीं आएंगे जिससे न केवल इस पूरी कवायद का खर्च वसूल हो जाएगा बल्कि एक बड़ी राशि सरकार को बैठे-बिठाए मिल जाएगी जिसका एक हिस्सा आम गरीब लोगों के खातों में जमा करवा कर वह सबका मुंह बंद कर देगी।
यानी एक-एक करके सरकार के सारे दावे ध्वस्त होते चले गए। ऊपर से मांग घटने, उत्पादन कम होने, फैक्ट्रियां बंद होने, बड़ी संख्या में कर्मचारियों के बेरोजगार होने और कीमत न मिलने के कारण फसलें बर्बाद होने की खबरों से चारों मुर्दनी बढ़ती जा रही है।
क्या इसके बाद भी कुछ कहने को बाकी रह जाता है? जो भक्तिभाव में सराबोर होकर अपनी सोचने-समझने की ताकत गंवा चुके हैं, उनकी बात करना बेकार है, लेकिन बाकी लोगों के लिए यह सवाल बनता है कि अब मोदी जी को देश के किस चौराहे पर बुलाया जाए। खुद वह घोषणा कर चुके हैं कि ‘अगर 50 दिनों में सबकुछ ठीक न हुआ तो जहां जिस चौराहे पर बुलाएंगे मैं हाजिर हो जाऊंगा’। 18 दिन का वक्त है अभी भी, तब तक सोच-विचार कर तय कर लें।

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