Official Blog Of : Arshad Khan Young Enthusiastic & Dynamic Young Leader Who Believes In Youth Empowerment. www.facebook.com/ArshadKhanINC
Saturday, October 29, 2016
How to change WiFi password and SSID in Reliance JioFi 2 hotspot device?
Thursday, October 27, 2016
विदेश नीति में कांग्रेस की कामयाबी को नही भुना पाई मोदी सरकार ।
* NSG
* राफेल सौदा
* पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद
* पाकिस्तान-रूस सैन्याभ्यास
* चीन का पाकिस्तान को समर्थन
Tuesday, October 25, 2016
Places In India I Want To Visit With My Best Friends
Distance: 180 km
Time taken: 4 hours
Travel tip: Preferably, take the route via Tonk. It takes more time but the roads on this route are in better condition.
Distance: 1300 km
Time taken: 4 days
Travel tip: If you plan to explore Binsar on the way, drive down from Almora towards Binsar where you will find a German Bakery on the main road. It serves delicious pizzas and 'thukpa'.
Distance: 228 km
Time taken: 4 hours
Travel Tip: Beware of rock falls as they are common during monsoon.
Distance: 535 km
Time taken: 9 hours
Travel tip: Take the NH 17 from Mumbai. At Kasal, take the SH 108 to reach Tarkarli. The route is scenic and worth the long drive.
Travel Route: Bangalore – Kanakapura – Chamarajanagar – Gundlupet – Bandipur – Theppakadu – ( via Masinagudi or Gudalur ) – Ooty
Wednesday, September 28, 2016
मै अमित शाह का खास आदमी हु मेरा कोई क्या बिगड़ेंगा - बंसल की मौत आत्महत्या है या हत्या ???
तेरी वाइफ और बेटी का वो हाल करेंगे की सुनने वाले भी काप जाएँगे,
बंसल ने सुसाइड नोट में लिखा -
(दोनों सुसाइड नोट्स नीचे पढ़े )
Kindly share
heard CBI was tough but not this extent of torture.
CBI director should probe these allegations. Investigative officer Pramod Tyagi was very supportive. I wish him well. Yogesh, son of suspended Corporate Affairs Ministry officer BK Bansal, being probed in a graft case, who along with his father committed suicide at their East Delhi apartment on 27 September 2016.
Friday, September 23, 2016
शिवाजी और मुस्लमान
शिवाजी, जनता में इसलिए लोकप्रिय नहीं थे क्योंकि वे मुस्लिम- विरोधी थे या वे ब्राह्मणों या गायों की पूजा करते थे। वे जनता के प्रिय इसलिए थे क्योंकि उन्होंने किसानों पर लगान ओर अन्य करों का भार कम किया था। शिवाजी के प्रशासनिक तंत्र का चेहरा मानवीय था और वह धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता था। सैनिक और प्रशासनिक पदों पर भर्ती में शिवाजी धर्म को कोई महत्व नहीं देते थे।
उनकी जलसेना का प्रमुख सिद्दी संबल नाम का मुसलमान था और उसमें बडी संख्या में मुस्लिम सिददी थे। दिलचस्प बात यह है कि शिवाजी की सेना से भिडने वाली औरंगज़ेब की सेना नेतृत्व मिर्जा राजा जयसिंह के हाथ में था, जो कि राजपूत था।
जब शिवाजी आगरा के किले में नजरबंद थे तब कैद से निकल भागने में जिन दो व्यक्तियों ने उनकी मदद की थी उनमें से एक मुलमान था जिसका नाम मदारी मेहतर था। उनके गुप्तचर मामलों के सचिव मौलाना हैदर अली थे और उनके तोपखाने की कमान इब्राहिम गर्दी के हाथ मे थी। उनके व्यक्तिगत अंगरक्षक का नाम रूस्तम-ए- जामां था। शिवाजी सभी धर्मों का सम्मान करते थे। उन्होंने हजरत बाबा याकूत थोर वाले को जीवन पर्यन्त पेंशन दिए जाने का आदेश दिया था। उन्होंने फादर अंब्रोज की उस समय मदद की जब गुजरात में स्थित उनके चर्च पर आक्रमण हुआ। अपनी राजधानी रायगढ़ में अपने महल के ठीक सामने शिवाजी ने एक मस्जिद का निर्माण करवाया था जिसमें उनके अमले के मुस्लिम सदस्य सहूलियत से नमाज अदा कर सकें। ठीक इसी तरह, उन्होंने महल के दूसरी और स्वयं की नियमित उपासना के लिए जगदीश्वर मंदिर बनवाया था। अपने सैनिक अभियानों के दौरान शिवाजी का सैनिक कमांडरों को यह सपष्ट निर्देश था रहता था कि मुसलमान महिलाओं और बच्चों के साथ कोई दुर्व्यवहार न किया जाए।
मस्जिदों और दरगाहों को सुरक्षा दी जाए और यदि कुरआन की प्रति किसी सैनिक को मिल जाए तो उसे सम्मान के साथ किसी मुसलमान को सौंप दिया जाए।
एक विजित राज्य के मुस्लिम राजा की बहू को जब उनके सैनिक लूट के सामान के साथ ले आए तो शिवाजी ने उस महिला से माफी माँगी और अपने सैनिकों की सुरक्षा में उसे उसके महल तक वापस पहुँचाया शिवाजी को न तो मुसलमानों से घृणा थी और न ही इस्लाम से। उनका एकमात्र उद्देश्य बडे से बडे क्षेत्र पर अपना राज कायम करना था। उन्हें मुस्लिम विरोधी या इस्लाम विरोधी बताना पूरी तरह गलत है। न ही अफजल खान हिन्दू विरोधी था। जब शिवाजी ने अफजल खान को मारा तब अफजल खान के सचिव कृष्णाजी भास्कर कुलकर्णी ने शिवाजी पर तलवार से आक्रमण किया था। आज सांप्रदायिकरण कर उनका अपने राजनेतिक हित साधान के लिए उपयोग कर रही हैं।
सांप्रदायिक चश्मे से इतिहास को देखना-दिखाना सांप्रदायिक ताकतों की पुरानी आदत है। इस समय हम जो देख रहे हैं वह इतिहास का सांप्रदायिकीकरण कर उसका इस्तेमाल समाज को बांटने के लिए करने का उदाहरण है। समय का तकाजा है कि हम संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठें ओर राष्ट्र निर्माण के काम में संलग्न हों। हमें राजाओं, बादशाहों और नवाबों को किसी धर्म विशेष के प्रतिनिधि के तौर पर देखने की बजाए ऐसे शासकों की तरह देखना चाहिए जिनका एकमात्र उद्देश्य सत्ता पाना और उसे कायम रखना था।
(लेखक ‘राम पुनियानी’ आई. आई. टी. मुंबई में प्रोफेसर थे, और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)
साभार दैनिक ‘अवाम-ए-हिंद, नई दिल्ली, बृहस्पतिवार 24 सितंबर 2009,पृष्ठ 6
Wednesday, September 21, 2016
क्यों बढ़ती है मुसलिम आबादी? एक विश्लेषण.
मुसलमानों की आबादी बाक़ी देश के मुक़ाबले तेज़ी से क्यों बढ़ रही है? क्या मुसलमान जानबूझ कर तेज़ी से अपनी आबादी बढ़ाने में जुटे हैं? क्या मुसलमान चार-चार शादियाँ कर अनगिनत बच्चे पैदा कर रहे हैं? क्या मुसलमान परिवार नियोजन को इसलाम-विरोधी मानते हैं? क्या हैं मिथ और क्या है सच्चाई? एक विश्लेषण.
तो साल भर से रुकी हुई वह रिपोर्ट अब जारी होनेवाली है! हालाँकि रिपोर्ट 'लीक' हो कर तब ही कई जगह छप-छपा चुकी थी. अब एक साल बाद फिर 'लीक' हो कर छपी है. ख़बर है कि यह सरकारी तौर पर जल्दी ही जारी होनेवाली है! रिपोर्ट 2011 की जनगणना की है. देश की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा बढ़ गया है. 2001 में कुल आबादी में मुसलमान 13.4 प्रतिशत थे,
जो 2011 में बढ़ कर 14.2 प्रतिशत हो गये! असम, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, केरल, उत्तराखंड, हरियाणा और यहाँ तक कि दिल्ली की आबादी में भी मुसलमानों का हिस्सा पिछले दस सालों में काफ़ी बढ़ा है! असम में 2001 में क़रीब 31 प्रतिशत मुसलमान थे, जो 2011 में बढ़ कर 34 प्रतिशत के पार हो गये. पश्चिम बंगाल में 25.2 प्रतिशत से बढ़ कर 27, केरल में 24.7 प्रतिशत से बढ़ कर 26.6, उत्तराखंड में 11.9 प्रतिशत से बढ़ कर 13.9, जम्मू- कश्मीर में 67 प्रतिशत से बढ़ कर 68.3, हरियाणा में 5.8 प्रतिशत से बढ़ कर 7 और दिल्ली की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा 11.7 प्रतिशत से बढ़ कर 12.9 प्रतिशत हो गया.
क्या हुआ बांग्लादेशियों का?
वैसे बाक़ी देश के मुक़ाबले असम और पश्चिम बंगाल में मुसलिम आबादी में हुई भारी वृद्धि के पीछे बांग्लादेश से होनेवाली घुसपैठ भी एक बड़ा कारण है. दिलचस्प बात यह है कि नौ महीने पहले अपने चुनाव प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी ने पश्चिम बंगाल में एक सभा में दहाड़ कर कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठिये 16 मई के बाद अपना बोरिया-बिस्तर बाँध कर तैयार रहें, वह यहाँ रहने नहीं पायेंगे. लेकिन सत्ता में आने के बाद से अभी तक सरकार ने इस पर चूँ भी नहीं की है! तब हिन्दू वोट बटोरने थे, अब सरकार चलानी है. दोनों में बड़ा फ़र्क़ है! ज़ाहिर है कि अब भी ये आँकड़े साक्षी महाराज जैसों को नया बारूद भी देंगे. वैसे हर जनगणना के बाद यह सवाल उठता रहा है कि मुसलमानों की आबादी बाक़ी देश के मुक़ाबले ज़्यादा तेज़ क्यों बढ़ रही है? और क्या एक दिन मुसलमानों की आबादी इतनी बढ़ जायेगी कि वह हिन्दुओं से संख्या में आगे निकल जायेंगे? ये सवाल आज से नहीं उठ रहे हैं. आज से सौ साल से भी ज़्यादा पहले 1901 में जब अविभाजित भारत में आबादी के आँकड़े आये और पता चला कि 1881 में 75.1 प्रतिशत हिन्दुओं के मुक़ाबले 1901 में उनका हिस्सा घट कर 72.9 प्रतिशत रह गया है, तब बड़ा बखेड़ा खड़ा हुआ. उसके बाद से लगातार यह बात उठती रही है कि मुसलमान तेज़ी से अपनी आबादी बढ़ाने में जुटे हैं, वह चार शादियाँ करते हैं,
अनगिनत बच्चे पैदा करते हैं, परिवार नियोजन को ग़ैर- इसलामी मानते हैं और अगर उन पर अंकुश नहीं लगाया गया तो एक दिन भारत मुसलिम राष्ट्र हो जायेगा!
क्या अल्पसंख्यक हो जायेंगे हिन्दू?
अभी पिछले दिनों उज्जैन जाना हुआ. दिल्ली के अपने एक पत्रकार मित्र के साथ था. वहाँ सड़क पर पुलिस के एक थानेदार महोदय मिले. उन्हें बताया गया कि दिल्ली के बड़े पत्रकार आये हैं. तो कहने लगे, साहब बुरा हाल है. यहाँ एक-एक मुसलमान चालीस-चालीस बच्चे पैदा कर रहा है. आप मीडियावाले कुछ लिखते नहीं है!
सवाल यह है कि एक थानेदार को अपने इलाक़े की आबादी के बारे में अच्छी तरह पता होता है. कैसे लोग
हैं, कैसे रहते हैं, क्या करते हैं, कितने अपराधी हैं, इलाक़े की आर्थिक हालत कैसी है, वग़ैरह-वग़ैरह. फिर भी पुलिस का वह अफ़सर पूरी ईमानदारी से यह धारणा क्यों पाले बैठा था कि एक-एक मुसलमान चार-चार शादियाँ और चालीस-चालीस बच्चे पैदा कर रहा है! यह अकेले उस पुलिस अफ़सर की बात नहीं. बहुत-से लोग ऐसा ही मानते हैं. पढ़े-लिखे हों या अनपढ़. साक्षी महाराज हों या बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य, जो हिन्दू महिलाओं को चार से लेकर दस बच्चे पैदा करने की सलाह दे रहे हैं!
क्यों? तर्क यही है न कि अगर हिन्दुओं ने अपनी आबादी तेज़ी से न बढ़ायी तो एक दिन वह 'अपने ही देश में अल्पसंख्यक' हो जायेंगे!
मुसलमान: मिथ और सच्चाई!
यह सही है कि मुसलमानों की आबादी हिन्दुओं या और दूसरे धर्मावलम्बियों के मुक़ाबले ज़्यादा तेज़ी से बढ़ी है.
1961 में देश में केवल 10.7 प्रतिशत मुसलमान और 83.4 प्रतिशत हिन्दू थे, जबकि 2011 में मुसलमान बढ़ कर 14.2 प्रतिशत हो गये और हिन्दुओं के घट कर 80 प्रतिशत से कम रह जाने का अनुमान है. लेकिन फिर भी न हालत उतनी 'विस्फोटक' है, जैसी उसे बनाने की कोशिश की जा रही और न ही उन तमाम 'मिथों' में कोई सार है, जिन्हें मुसलमानों के बारे में फैलाया जाता है. सच यह है कि पिछले दस-पन्द्रह सालों में मुसलमानों की आबादी की बढ़ोत्तरी दर लगातार गिरी है. 1991 से 2001 के दस सालों के बीच मुसलमानों की आबादी 29 प्रतिशत बढ़ी थी, लेकिन 2001 से 2011 के दस सालों में यह बढ़त सिर्फ़ 24 प्रतिशत ही रही. हालाँकि कुल आबादी की औसत बढ़ोत्तरी इन दस सालों में 18 प्रतिशत ही रही.
उसके मुक़ाबले मुसलमानों की बढ़ोत्तरी दर 6 प्रतिशत
अंक ज़्यादा है, लेकिन फिर भी उसके पहले के दस सालों के मुक़ाबले यह काफ़ी कम है. एक रिसर्च रिपोर्ट (हिन्दू-मुसलिम फ़र्टिलिटी डिफ़्रेन्शियल्स: आर. बी. भगत और पुरुजित प्रहराज) के मुताबिक़ 1998-99 में दूसरे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के समय जनन दर (एक महिला अपने जीवनकाल में जितने बच्चे पैदा करती है) हिन्दुओं में 2.8 और मुसलमानों में 3.6 बच्चा प्रति महिला थी. 2005-06 में हुए तीसरे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (Vol 1, Page 80, Table 4.2) के अनुसार यह घट कर हिन्दुओं में 2.59 और मुसलमानों में 3.4 रह गयी थी. यानी औसतन एक मुसलिम महिला एक हिन्दू महिला के मुक़ाबले अधिक से अधिक एक बच्चे को और जन्म देती है. तो ज़ाहिर-सी बात है कि यह मिथ पूरी तरह निराधार है कि मुसलिम परिवारों में दस-दस बच्चे पैदा होते हैं. इसी तरह, लिंग अनुपात को देखिए. 1000 मुसलमान पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं की संख्या 936 है. यानी हज़ार में कम से कम 64 मुसलमान पुरुषों को अविवाहित ही रह जाना पड़ता है. ऐसे में मुसलमान चार-चार शादियाँ कैसे कर सकते हैं?
मुसलमान और परिवार नियोजन
एक मिथ यह है कि मुसलमान परिवार नियोजन को नहीं अपनाते. यह मिथ भी पूरी तरह ग़लत है. केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में मुसलिम आबादी बड़ी संख्या में परिवार नियोजन को अपना रही है. ईरान और बांग्लादेश ने तो इस मामले में कमाल ही कर दिया है.
1979 की धार्मिक क्रान्ति के बाद ईरान ने परिवार नियोजन को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया था, लेकिन दस साल में ही जब जनन दर आठ बच्चों तक पहुँच गयी, तो ईरान के इसलामिक शासकों को परिवार नियोजन की ओर लौटना पड़ा और आज वहाँ जनन दर घट कर सिर्फ़ दो बच्चा प्रति महिला रह गयी है यानी भारत की हिन्दू महिला की जनन दर से भी कम! इसी प्रकार बांग्लादेश में भी जनन दर घट कर अब तीन बच्चों पर आ गयी है. प्रसिद्ध जनसांख्यिकी विद
निकोलस एबरस्टाट और अपूर्वा शाह के एक अध्य्यन (फ़र्टिलिटी डिक्लाइन इन मुसलिम वर्ल्ड) के मुताबिक़ 49 मुसलिम बहुल देशों में जनन दर 41 प्रतिशत कम हुई है, जबकि पूरी दुनिया में यह 33 प्रतिशत ही घटी है. इनमें ईरान, बांग्लादेश के अलावा ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, लीबिया, अल्बानिया, क़तर और क़ुवैत में पिछले तीन दशकों में जनन दर 60 प्रतिशत से ज़्यादा गिरी है और वहाँ परिवार नियोजन को अपनाने से किसी को इनकार नहीं है. भारत में मुसलमान क्यों ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं? ग़रीबी और अशिक्षा इसका सबसे बड़ा कारण है. भगत और प्रहराज के अध्य्यन के मुताबिक़ 1992-93 के एक अध्य्यन के अनुसार तब हाईस्कूल या उससे ऊपर शिक्षित मुसलिम परिवारों में जनन दर सिर्फ़ तीन बच्चा प्रति महिला रही, जबकि अनपढ़ परिवारों में यह पाँच बच्चा प्रति महिला रही. यही बात हिन्दू परिवारों पर भी लागू रही. हाईस्कूल व उससे ऊपर शिक्षित हिन्दू परिवार में जनन दर दो बच्चा प्रति महिला रही, जबकि अनपढ़ हिन्दू परिवार में यह चार बच्चा प्रति महिला रही [स्रोत IIPS (1995): 99]. ठीक यही बात आर्थिक पिछड़ेपन के मामले में भी देखने में आयी और अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों में जनन दर औसत से कहीं ज़्यादा पायी गयी. 2005-06 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (Vol 1, Page 80, Table 4.2) में भी यही सामने आया कि समाज के बिलकुल अशिक्षित वर्ग में राष्ट्रीय जनन दर 3.55 और सबसे ग़रीब वर्ग में 3.89 रही, जो राष्ट्रीय औसत से कहीं ज़्यादा है. और इसके उलट सबसे अधिक पढ़े-
लिखे वर्ग में राष्ट्रीय जनन दर केवल 1.8 और सबसे धनी वर्ग में केवल 1.78 रही. यानी स्पष्ट है कि समाज के जिस वर्ग में जितनी ज़्यादा ग़रीबी और अशिक्षा है,
उनमें परिवार नियोजन के बारे में चेतना का उतना ही अभाव भी है. इसलिए जनन दर को नियंत्रण में लाने के लिए शिक्षा और आर्थिक विकास पर सबसे पहले ध्यान देना होगा.
गर्भ निरोध से परहेज़ नहीं
परिवार नियोजन की बात करें तो देश में 50.2 प्रतिशत हिन्दू महिलाएँ गर्भ निरोध का कोई आधुनिक तरीक़ा अपनाती हैं, जबकि उनके मुक़ाबले 36.4 प्रतिशत मुसलिम महिलाएँ ऐसे तरीक़े अपनाती हैं (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3, 2005-06, Vol 1, Page 122, Table 5.6.1). इससे दो बातें साफ़ होती हैं. एक यह कि मुसलिम महिलाएँ गर्भ निरोध के तरीक़े अपना रही हैं, हालाँकि हिन्दू महिलाओं के मुक़ाबले उनकी संख्या कम है और दूसरी यह कि ग़रीब और अशिक्षित मुसलिम महिलाओं में यह आँकड़ा और भी घट जाता है. ऐसे में साफ़ है कि मुसलिम महिलाओं को गर्भ निरोध और परिवार नियोजन से कोई परहेज़ नहीं. ज़रूरत यह है कि उन्हें इस बारे में सचेत, शिक्षित और प्रोत्साहित किया जाये. दूसरी एक और बात, जिसकी ओर कम ही ध्यान जाता है. हिन्दुओं के मुक़ाबले मुसलमान की जीवन प्रत्याशा (Life expectancy at
birth) लगभग तीन साल अधिक है. यानी हिन्दुओं के लिए जीने की उम्मीद 2005-06 में 65 साल थी, जबकि मुसलमानों के लिए 68 साल. सामान्य भाषा में समझें तो एक मुसलमान एक हिन्दू के मुक़ाबले कुछ अधिक समय तक जीवित रहता है
( Inequality in Human Development by Social and Economic Groups in India). इसके अलावा हिन्दुओं में बाल मृत्यु दर 76 है, जबकि मुसलमानों में यह केवल 70 है (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3, 2005-06, Vol 1, Page 182, Table 7.2). यह दोनों बातें भी मुसलमानों की आबादी बढ़ने का एक कारण है. आबादी का बढ़ना चिन्ता की बात है. इस पर लगाम लगनी चाहिए. लेकिन इसका हल वह नहीं, जो साक्षी महाराज जैसे लोग सुझाते हैं. हल यह है कि सरकार विकास की रोशनी को पिछड़े गलियारों तक जल्दी से जल्दी ले जाये, शिक्षा की सुविधा को बढ़ाये, परिवार नियोजन कार्यक्रमों के लिए ज़ोरदार मुहिम छेड़े, घर-घर पहुँचे, लोगों को समझे और समझाये तो तसवीर क्यों नहीं बदलेगी? आख़िर पोलियो के ख़िलाफ़ अभियान सफल हुआ या नहीं!
by Qamar Waheed Naqvi