कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी यूसी बर्कले में ऐसे राजनेता के तौर पर दिखे जो शब्दों के गूढ़ अर्थ और उसके विभिन्न आयामों को अच्छी तरह समझता है। उनका मानना है कि नरेंद्र मोदी सरकार के दौर में भारत दोराहे पर खड़ा है जहां वो दुनिया के इंजन के रूप में अपनी क्षमता को अहिंसक तरीके से पूरा कर सकता है, या अपनी विविधता पर हमला करके प्रतिरक्षा और एकता को नष्ट कर सकता है।
राहुल गांधी ने भारत के उदारवादियों के मूलभूत भाग के बारे में कहा। उन्होंने उदारवादियों की उपमा देते हुए अंडमान के आदिवासियों के बारे में बताया कि अपने देसी ज्ञान के कारण वे 2004 की भयावह सूनामी में किस तरह से खुद को बचा पाये जबकि वहां रहने वाले अन्य लोग या पर्यटक ऐसा नहीं कर पाये।
श्री गांधी ने बताया कि आदिवासियों को ये पहले से ही पता था कि जब समुद्र में विशाल लहरें उफान मारती है तो किस तरह पीछे हट जाना चाहिए। यह एक वाकया भी सुनाया कि पर्यटकों और वहां के दूसरे लोगों ने समुद्र तट पर फंसी मछलियों को पकड़ने के लिए आदिवासियों की चेतावनी की उपेक्षा की और सुनामी में उनकी जान चली गयी। श्री गांधी ने भारतीय आदिवासियों की तुलना भारतीय उदारवादियों से की। उन्होंने बताया कि भारतीय उदारवादी यह चेतावनी दे रहे हैं कि नफरत फैलाने वाले और हिंसा का सहारा लेकर बहुसंख्यकवाद कायम करने वाली भगवा ब्रिगेड का हुजूम इससे पहले कि हमें मिटा दे भारत में हमें 2019 में इन्हें हरा देना चाहिए।
हमारे देशवासियों में से कई लोग भाजपा/संघ के आसान उत्तर और उनके विश्वासघाती रोडमैप को अपनाने के लिए प्रतिज्ञा कर सकते हैं। श्री गांधी ने इस बात पर जोर दिया कि हमें उपजाऊ और निपुण उदारवादी विचारधारा का उपयोग करके एकजुटता के साथ अपना रास्ता तैयार करना चाहिए। सरल उत्तर के विपरीत संघ का खतरनाक रूप, समुदायों के बीच संसाधन-हड़पने की प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करता है, कांग्रेस समाज के हर वर्ग के लिए उदारपूर्ण शांति और बातचीत वाले लोकतंत्र की हिमायती रही है।
अपने पिता की तरह राहुल ने बीसवीं सदी में की गयी निराशाजनक भविष्यवाणियों के बावजूद भारत के अस्तित्व का गुणगान किया। भारत के लेफ्ट या राइट बढ़ने के सवाल के जवाब में उन्होंने इंदिरा गांधी के दृढ़ संकल्प का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत मजबूती के साथ तनकर खड़ा रहेगा। अहिंसा के प्रति राष्ट्रीय प्रतिबद्धता ने भारतीय विविधता का मान रखा। हमारे देश में 29 राज्य हैं जहां दुनिया के सभी धर्मों के लोग रहते हैं। 17 आधिकारिक भाषाओं के साथ अनेक भाषाएँ एवं विशाल भू-भाग है, जो हिमालय से लेकर रेगिस्तान तक फैला हुआ है। अधिकतर विशेषज्ञों का मानना था कि भारत ज्यादा समय तक टिक नहीं पायेगा। अहिंसा ने ही आजादी के बाद भी भारत को अपने 40 करोड़ लोगों का पेट भरने में मदद की और हम अपने किसानों की कड़ी मेहनत के कारण खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बन गये। श्री गांधी ने मोदी की एकतरफा निर्णय लेने की दिशा में झुकाव का सख्त विरोध किया।
उन्होंने कहा कि पश्चिम में आम धारणा है कि लोगों के पास विचार हैं। आप सभी कह सकते हैं कि आपके पास विचार है। लेकिन दुनिया को देखने का एक अलग नज़रिया है। सहज ज्ञान युक्त धारणा ये है कि लोगों के पास विचार होने की बजाय विचारों के पास लोग होना चाहिए। इसलिए, मेरे पास ये विचार है की बजाय विचार के पास मैं हूं, होना चाहिए। यही धारणा अहिंसा की बुनियाद है जिसे गांधी जी ने बताया था। यदि कोई इस धारणा को स्वीकार करता है कि विचारों से लोग प्रभावित होते हैं तो बुरे विचार के शिकार किसी भी व्यक्ति को प्यार और सहानुभूति से जवाब दिया जा सकता है। आप उसके खिलाफ एक ही काम कर सकते हैं कि उसे बुरे विचार से छुटकारा दिलाने की कोशिश करें और उसकी बुरी सोच को अच्छे विचारों से बदल डालें।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने चेताया कि नफरत से भरा हुआ गुस्सा और हिंसा तथा ध्रुवीकरण की राजनीति ने आज भारत में गंदे तरीके से सिर उठा लिया है। हिंसा और नफरत लोगों का ध्यान असली काम से भटका देती है। उदारवादी पत्रकारों को गोली मार दी जाती है, लोगों की हत्या कर दी जाती है क्योंकि वे दलित हैं, बीफ खाने के शक में मुसलमानों को मारा गया, ये सब भारत में नया है और भारत को बुरी तरह से नुकसान पहुंचा रहा है। नफरत की राजनीति भारत को बांटती है और ध्रुवीकरण करती है और भारत के लाखों लोग महसूस करते हैं कि उनके अपने ही देश में उनका कोई भविष्य नहीं है। आज एक दूसरे से जुड़ी हुई दुनिया में, यह बेहद खतरनाक है। यह लोगों को अलग-थलग करता है और उन्हें कट्टरपंथी विचारों के प्रति संवेदनशील बना देता है।
श्री गांधी ने कहा कि अहिंसा के रास्ते पर चलकर ही भारत आज आर्थिक ताकत के तौर पर उभर पाया है। आज भारत के आईआईटी और अन्य उच्च शिक्षा संस्थान प्रौद्योगिकी की वैश्विक प्रगति में सिलिकॉन वैली में भी अग्रणी भूमिका निभाते हैं। 1947 के बाद, रोजगार और आर्थिक विकास के इस शक्तिशाली इंजन के दिल को भारत ने अपने खून, पसीने और मेहनती हाथों से तैयार किया था। यदि रोजगार सृजन नहीं होता है तो भारत के लिए कोई भी विकास बेमानी होगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितनी तेजी से बढ़ते हैं। यदि आप रोजगार पैदा नहीं कर रहे हैं तो आप वास्तव में समस्या का हल नहीं कर रहे हैं। इसलिए, भारत की सबसे बड़ी चुनौती रोजगार की है। लगभग 1.2 करोड़ नौजवान हर साल भारतीय रोजगार बाजार में आते हैं। चीन के विपरीत भारत एक लोकतांत्रिक देश है और उसे लोकतांत्रिक वातावरण में रोजगार पैदा करना है। भारत चीन की तरह ताकत का इस्तेमाल करके ऐसा नहीं कर सकता, न ही वो ऐसा करना चाहता है। हम बड़े कारखानों को डराकर नियंत्रित करने वाले मॉडल का अनुसरण नहीं कर सकते। भारत में नौकरियां छोटे और मध्यम स्तर के उद्योगों से मिलने वाली हैं। भारत को छोटे और मध्यम व्यवसायों की भारी संख्या को अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों में बदलने की जरुरत है।
श्री गांधी ने विकास के मोदी मॉडल की आलोचना की जो केवल चुनिंदा 100 शीर्ष कंपनियों के फायदे के लिये किया जा रहा है। इन्हीं चंद अमीरों का भारतीय बाजार और बैंकिंग प्रणाली पर कब्जा हो चुका है। नोटबंदी जैसे फैसलों ने रातों-रात चलन ने रही 86 प्रतिशत नकदी को खत्म कर दिया और इसे मुख्य आर्थिक सलाहकार, मंत्रिमंडल या यहां तक कि संसद से पूछे बिना मनमाने ढंग से लागू कर दिया गया, जिसकी भारत को विनाशकारी कीमत चुकानी पड़ी। मौजूदा समय में हम पर्याप्त रोजगार पैदा नहीं कर रहे। 30,000 नये युवा प्रतिदिन रोजगार बाजार में शामिल हो रहे हैं और इसके बाद भी सरकार रोजाना केवल 500 नौकरियां पैदा कर पा रही है।
आर्थिक विकास में गिरावट आज गंभीर चिंता का विषय है और इससे देश में गुस्सा पनप रहा है। सरकार की आर्थिक नीतियां, नोटबंदी और जल्दबाजी में लागू जीएसटी ने भारी नुकसान पहुंचाया है। नोटबंदी के चलते लाखों छोटे व्यवसायों का सफाया हो गया। नकदी पर निर्भर किसानों और मजदूरों पर तगड़ी मार पड़ी। कृषि गंभीर संकट में है और देशभर में किसानों की आत्महत्या का दौर जारी है। खुद पर किये गये नोटबंदी के प्रहार की चोट ने भारत की जीडीपी को लगभग 2 प्रतिशत का नुकसान पहुंचाया है। श्री राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की, कि भारत के जबरदस्त संस्थागत ज्ञान की उपेक्षा न करें और स्थापित प्रक्रियाओं का सम्मान करें।
भाजपा के भारी भरकम दुष्प्रचार तंत्र की तमाम कोशिशों के बावजूद राहुल गांधी ने उनसे जुड़े लोगों की अगुआई करने में अपनी तत्परता को दर्शाया है। अहिंसा, उदारवाद और लोकतंत्र के प्रति उनका जुनून ही उन्हें आम लोगों का नेता बनाता है।
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