यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा ‘इंडिया ऐट 70 - रिफलेक्शन ऑन द पाथ फॉरवर्ड’ विषय पर दिये गये भाषण का हिन्दी अनुवाद -
धन्यवाद हर्ष, मैं यहां आप सभी का स्वागत करता हूँ।
आज 11 सितम्बर है। आज के दिन की शुरुआत मैं उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि के साथ करना चाहता हूं जिनकी जान गयी थी और जिन लोगों ने अपने प्रियजनों को खो दिया था।
आज हम उनकी याद में एक साथ खड़े हैं।
आज हम उनकी याद में एक साथ खड़े हैं।
एक राजनेता के तौर पर हमें काफी जगहों पर जाना पड़ता है और अलग-अलग लोगों की बात सुननी होती है। मैं अपनी बात आपको एक छोटी सी कहानी सुनाकर शुरु करना चाहता हूं। आपको याद होगा कि कई साल पहले भारत में भयावह सुनामी आयी थी। और इसने अंडमान निकोबार द्वीप समूह को बुरी तरह प्रभावित किया था। और उस वक्त हम अंडमान निकोबार द्वीप समूह के लिए मदद का सामान भेजने में जुटे हुए थे, मैं मारे गये लोगों की सूची देख रहा था और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में कई सारे समुदाय रहते हैं। मैंने नोटिस किया कि मरने वालों की सूची में कोई भी आदिवासी समुदाय का व्यक्ति नहीं था। तो मैंने वहां के कुछ लोगों से पूछा। मैंने कहा, ये कैसे हुआ? मैंने कहा कि वहां काफी सारे लोगों की जान गयी है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह में काफी संख्या में आदिवासी लोग भी रहते हैं लेकिन इस भयानक सुनामी में मरने वालों में एक भी आदिवासी नहीं है। क्या हुआ?
उनमे से किसी ने मुझे बताया कि जब सुनामी आती है तो समुद्र में उफान आता है। जिससे काफी संख्या में मछलियां किनारे पर आ जाती हैं। और फिर उसने बताया कि आदिवासी लोग जानते हैं कब सुनामी आयेगी और कब जायेगी, जबकि जो लोग आदिवासी नहीं हैं उनको ये नहीं पता होता। और जब सुनामी आयी तो समुद्र में उफान आ गया।
जो लोग आदिवासी नहीं थे वे मछलियों को पाने के लिए समुद्र की ओर दौड़े, जबकि आदिवासी लोग पहाड़ों की तरफ भागे। और कुछ आदिवासियों ने दूसरे लोगों से कहा भी कि उधर मत जाओ। आप मारे जाओगे। लेकिन उन लोगों ने नहीं सुना। वे समुद्र की तरफ दौड़ पड़े। और यही कारण है कि एक भी आदिवासी की जान नहीं गयी।
और मैं उदारवादी होने के नाते आज बिल्कुल ऐसा ही महसूस करता हूं। हर कोई जानता है कि व्यवस्था में कुछ न कुछ बेहद गलत होने जा रहा है। लेकिन दक्षिणपंथी विचारधारा वाले लोग कह रहे हैं कि उधर जाओ और मछली ले लो। और लोग आसान जवाब खोज रहे हैं। लोग आसान जवाब तो खोज रहे हैं लेकिन, उनको उन आसान जवाबों से कोई समाधान नहीं मिलने वाला।
यही कारण हैं कि मैं आज यहां आया हूं। यह एक बेहतरीन संस्थान है और ये संस्थान उदार विचारधारा में विश्वास करता है, ये आपसी संवाद में विश्वास करता है और ये लोगों की बात सुनने में विश्वास करता है, ये आपसी बातचीत में विश्वास करता है। इस संस्थान का शानदार इतिहास रहा हैं और मैं उस इतिहास का आदर करता हूँ। जैसा कि छिब्बर जी आपने कहा, मेरे परदादा यहां आये थे और उन्होंने यहां भाषण दिया था। मैं आप सभी को मुझे यहां बुलाने के लिये धन्यवाद करता हूँ। मैं 15 - 20 मिनट में अपनी बात कहूंगा उसके बाद आप सभी के साथ बातचीत करूँगा। आप लोग जो चाहे मुझसे सवाल पूछ सकते हैं।
उनमे से किसी ने मुझे बताया कि जब सुनामी आती है तो समुद्र में उफान आता है। जिससे काफी संख्या में मछलियां किनारे पर आ जाती हैं। और फिर उसने बताया कि आदिवासी लोग जानते हैं कब सुनामी आयेगी और कब जायेगी, जबकि जो लोग आदिवासी नहीं हैं उनको ये नहीं पता होता। और जब सुनामी आयी तो समुद्र में उफान आ गया।
जो लोग आदिवासी नहीं थे वे मछलियों को पाने के लिए समुद्र की ओर दौड़े, जबकि आदिवासी लोग पहाड़ों की तरफ भागे। और कुछ आदिवासियों ने दूसरे लोगों से कहा भी कि उधर मत जाओ। आप मारे जाओगे। लेकिन उन लोगों ने नहीं सुना। वे समुद्र की तरफ दौड़ पड़े। और यही कारण है कि एक भी आदिवासी की जान नहीं गयी।
और मैं उदारवादी होने के नाते आज बिल्कुल ऐसा ही महसूस करता हूं। हर कोई जानता है कि व्यवस्था में कुछ न कुछ बेहद गलत होने जा रहा है। लेकिन दक्षिणपंथी विचारधारा वाले लोग कह रहे हैं कि उधर जाओ और मछली ले लो। और लोग आसान जवाब खोज रहे हैं। लोग आसान जवाब तो खोज रहे हैं लेकिन, उनको उन आसान जवाबों से कोई समाधान नहीं मिलने वाला।
यही कारण हैं कि मैं आज यहां आया हूं। यह एक बेहतरीन संस्थान है और ये संस्थान उदार विचारधारा में विश्वास करता है, ये आपसी संवाद में विश्वास करता है और ये लोगों की बात सुनने में विश्वास करता है, ये आपसी बातचीत में विश्वास करता है। इस संस्थान का शानदार इतिहास रहा हैं और मैं उस इतिहास का आदर करता हूँ। जैसा कि छिब्बर जी आपने कहा, मेरे परदादा यहां आये थे और उन्होंने यहां भाषण दिया था। मैं आप सभी को मुझे यहां बुलाने के लिये धन्यवाद करता हूँ। मैं 15 - 20 मिनट में अपनी बात कहूंगा उसके बाद आप सभी के साथ बातचीत करूँगा। आप लोग जो चाहे मुझसे सवाल पूछ सकते हैं।
भारत एक विशाल देश हैं। इसके साथ ही यह दुनिया के सबसे जटिल देशों में से एक भी है। हर बार जब आपको लगता है कि आपने देश को समझ लिया हैं तभी ये देश आपके लिये कुछ नया पेश कर देता है। सच कहूं तो मैं ये कहूंगा कि अगर कोई ये कहता हैं कि मैंने देश को जान लिया है तो वह मूर्ख है। पिछली शताब्दी के पश्चिमी विचारकों व खुफिया संस्थानों के हिसाब से भारत एक असफल राष्ट्र होना चाहिए था। हमारे देश में 29 राज्य हैं जहां दुनिया के सभी धर्मों के लोग रहते हैं। 17 आधिकारिक भाषाओं के साथ अनेक भाषाएँ एवं विशाल भू-भाग है, जो हिमालय से लेकर रेगिस्तान तक फैला हुआ है। अधिकतर विशेषज्ञों का मानना था कि भारत ज्यादा समय तक टिक नहीं पायेगा। उनका अनुमान था कि यह अपनी विविधता और अंतरविरोधों के चलते ही कई टुकड़ों में बंट जायेगा। लेकिन फिर भी, जब श्रीमती इंदिरा गांधी से पूछा गया कि भारत लेफ्ट या राईट किस ओर बढ़ेगा तो उन्होंने कहा था कि भारत तनकर सबसे ऊंचा खड़ा रहेगा।
जैसा कि भारत में कहा जाता है कि अहिंसा का विचार ही है जो लोगो को एक साथ गले लगाता है और मिलकर आगे बढ़ाता है। भारत में विभिन्न धर्म, जाति व भाषा को अहिंसा के विचार के बिना एकजुट नहीं किया जा सकता। महात्मा गाँधी ने इसी विचार को शानदार ताकतवर राजनैतिक हथियार के तौर पर दिया था।
पश्चिम में आम धारणा है कि लोगों के पास विचार हैं। आप सभी कह सकते हैं कि आपके पास विचार है। लेकिन दुनिया को देखने का एक अलग नज़रिया है। सहज ज्ञान युक्त धारणा ये है कि लोगों के पास विचार होने की बजाय विचारों के पास लोग होना चाहिए। इसलिए, मेरे पास ये विचार है की बजाय विचार के पास मैं हूं, होना चाहिए। यही धारणा अहिंसा की बुनियाद है जिसे गांधी जी ने बताया था। यदि कोई इस धारणा को स्वीकार करता है कि विचारों से लोग प्रभावित होते हैं तो बुरे विचार के शिकार किसी भी व्यक्ति को प्यार और सहानुभूति से जवाब दिया जा सकता है। आप उसके खिलाफ एक ही काम कर सकते हैं कि उसे बुरे विचार से छुटकारा दिलाने की कोशिश करें और उसकी बुरी सोच को अच्छे विचारों से बदल डालें। बुरी सोच के शिकार किसी भी व्यक्ति के खिलाफ हिंसा के इस्तेमाल के फलस्वरूप बुरा विचार ज्यादा तेजी से फैलेगा और उन लोगों के बीच तेजी से पहुंचेगा जो उसकी चिंता करते हैं और उससे प्यार करते हैं। अहिंसा का ये दर्शन भारत से बाहर दुनिया में भी फैला है।
पश्चिम में आम धारणा है कि लोगों के पास विचार हैं। आप सभी कह सकते हैं कि आपके पास विचार है। लेकिन दुनिया को देखने का एक अलग नज़रिया है। सहज ज्ञान युक्त धारणा ये है कि लोगों के पास विचार होने की बजाय विचारों के पास लोग होना चाहिए। इसलिए, मेरे पास ये विचार है की बजाय विचार के पास मैं हूं, होना चाहिए। यही धारणा अहिंसा की बुनियाद है जिसे गांधी जी ने बताया था। यदि कोई इस धारणा को स्वीकार करता है कि विचारों से लोग प्रभावित होते हैं तो बुरे विचार के शिकार किसी भी व्यक्ति को प्यार और सहानुभूति से जवाब दिया जा सकता है। आप उसके खिलाफ एक ही काम कर सकते हैं कि उसे बुरे विचार से छुटकारा दिलाने की कोशिश करें और उसकी बुरी सोच को अच्छे विचारों से बदल डालें। बुरी सोच के शिकार किसी भी व्यक्ति के खिलाफ हिंसा के इस्तेमाल के फलस्वरूप बुरा विचार ज्यादा तेजी से फैलेगा और उन लोगों के बीच तेजी से पहुंचेगा जो उसकी चिंता करते हैं और उससे प्यार करते हैं। अहिंसा का ये दर्शन भारत से बाहर दुनिया में भी फैला है।
सीजर शेवाज़ ने कहा है कि अहिंसा कोई अकर्मण्यता नहीं है, ये कोई चर्चा भी नहीं है। यह डरपोक या कमजोरों के लिए नहीं है। अहिंसा कड़ी मेहनत का काम है। आज यह विचार, यह खूबसूरत संघर्ष भारत में खतरे में हैं। लेकिन यही एकमात्र विचार है जिससे मानवता 21वीं सदी में बरकरार रह पायेगी और बेदाग ढंग से मजबूत होकर आगे बढ़ेगी।
आज़ादी से लेकर अब तक भारत का सफर काफी मुश्किलों और चुनौतियों से भरा रहा है। हमारे विभाजन का दौर इतिहास में रक्तपात से भरे दौर के तौर पर दर्ज है। आज़ादी के समय देश की 40 करोड़ आबादी खाद्यान्न संकट से जूझ रही थी। फिर भी भारत की उपलब्धियां महत्वपूर्ण हैं। साक्षरता, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार और जीवन प्रत्याशा को बढ़ाने जैसा काम एक पीढ़ी सामने किया गया। खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भरता, अकाल जैसी हालत को मिटाना, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय मुकाम, यहां तक कि कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी स्थान हासिल किया गया।
आज़ादी से लेकर अब तक भारत का सफर काफी मुश्किलों और चुनौतियों से भरा रहा है। हमारे विभाजन का दौर इतिहास में रक्तपात से भरे दौर के तौर पर दर्ज है। आज़ादी के समय देश की 40 करोड़ आबादी खाद्यान्न संकट से जूझ रही थी। फिर भी भारत की उपलब्धियां महत्वपूर्ण हैं। साक्षरता, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार और जीवन प्रत्याशा को बढ़ाने जैसा काम एक पीढ़ी सामने किया गया। खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भरता, अकाल जैसी हालत को मिटाना, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय मुकाम, यहां तक कि कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी स्थान हासिल किया गया।
जब श्री राजीव गांधी और मेरे प्रिय मित्र सैम पित्रोदा, जो यहां बैठे हैं, ने भारत में कंप्यूटर लाने की बात की, तो कई सारे लोग उनका मजाक उड़ा रहे थे। वास्तव में, भाजपा के एक नेता, जो बाद में प्रधानमंत्री बने, ने सवाल पूछा कि भारत में कंप्यूटर की क्या जरूरत है? हमें कंप्यूटर क्यों लाना चाहिए? सोचिए! जब भारत ने आईआईटी का निर्माण किया, तो पूरी दुनिया समेत भारत के कई सारे लोग भी इस सोच के बेहद खिलाफ थे कि एक गरीब देश को इस तरह के तकनीकी संस्थानों पर पैसा बर्बाद करना चाहिए। उन्होंने हम पर संदेह जताया और हैरानी से कहा कि हमारे जैसे देश को ऐसे संस्थानों की क्या जरुरत है? आज भारत के ये आईआईटी और अन्य उच्च शिक्षा संस्थान प्रौद्योगिकी की वैश्विक प्रगति में सिलिकॉन वैली में भी अग्रणी भूमिका निभाते हैं। और फिर आज हमारी तरफ देखिए। हमें इस बात का गर्व है कि हमने वो काम पूरा किया और लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने जैसा काम भी किया। हर चीज को लेकर भारत के बारे में हर कोई कहता है कि मानव इतिहास में ऐसा कोई लोकतांत्रिक देश नहीं है, और मैं इसे दोहराता हूं कि मानव इतिहास में ऐसा कोई लोकतांत्रिक देश नहीं है जिसने लाखों लोगों को गरीबी के जंजाल से बाहर निकाला हो, जिस तरह से भारत ने किया। ऐसा कभी नहीं हुआ। और ये काम हमने हिंसा के साथ नहीं किया, हमने लोगों को मारकर ऐसा नहीं किया, हमने इसे शांतिपूर्वक मिलजुल कर किया है।
हमारे इतिहास में पहली बार, अगर इसे सही ढंग से और ईमानदारी से किया गया तो, भारत के पास गरीबी को मिटाने का अवसर मौजूद है। यदि भारत 2030 तक गरीबी से 35 करोड़ लोगों को बाहर निकालने में सक्षम हो जाता है तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी, जिस पर मानव जाति पर गर्व हो सकता है। ऐसा करने के लिए हमें अगले 13 सालों तक 8 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हासिल करने की जरुरत होगी। भारत ने पहले ऐसा किया है, हम इसे फिर से कर सकते हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए ये जरुरी है कि भारत 10-15 वर्षों तक लगातार उच्च विकास दर बनाये रखे। 1947 के बाद, रोजगार और आर्थिक विकास के इस शक्तिशाली इंजन के दिल को भारत ने अपने खून, पसीने और मेहनती हाथों से तैयार किया था। यदि रोजगार सृजन नहीं होता है तो भारत के लिए कोई भी विकास बेमानी होगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितनी तेजी से बढ़ते हैं। यदि आप रोजगार पैदा नहीं कर रहे हैं तो आप वास्तव में समस्या का हल नहीं कर रहे हैं। इसलिए, भारत की सबसे बड़ी चुनौती रोजगार की है। लगभग 1.2 करोड़ नौजवान हर साल भारतीय रोजगार बाजार में आते हैं। उनमें से करीब 90 प्रतिशत हाई स्कूल या उससे कम शिक्षित होते हैं। चीन के विपरीत भारत एक लोकतांत्रिक देश है और उसे लोकतांत्रिक वातावरण में रोजगार पैदा करना है। भारत चीन की तरह ताकत का इस्तेमाल करके ऐसा नहीं कर सकता, न ही वो ऐसा करना चाहता है। हम बड़े कारखानों को डराकर नियंत्रित करने वाले मॉडल का अनुसरण नहीं कर सकते। भारत में नौकरियां छोटे और मध्यम स्तर के उद्योगों से मिलने वाली हैं। भारत को छोटे और मध्यम व्यवसायों की भारी संख्या को अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों में बदलने की जरुरत है। मौजूदा समय में, भारत में पूरा ध्यान शीर्ष 100 कंपनियों पर दिया जाता है। सब कुछ उनके लिए ही तैयार है। वो लोग बैंकिंग प्रणाली पर एकाधिकार जमा लेते हैं, सरकार के दरवाजे उनके लिए हमेशा खुले होते हैं और वो लोग अपने हिसाब से कानून बनाते हैं। इस बीच, छोटे और मध्यम कारोबार चलाने वाले उद्यमियों को बैंक से कर्ज लेने के लिये संघर्ष करना पड़ता है। उनके पास कोई सुरक्षा नहीं है और उन्हें कोई सहारा नहीं है। फिर भी, ये छोटे और मध्यम कारोबार भारत की बुनियाद हैं और दुनिया के लिए नवाचार हैं। बड़े व्यवसाय तो आसानी से भारत में अनिश्चितता को संभाल सकते हैं। उनको अपने गहरे संपर्कों, भरी हुई झोली से सुरक्षा मिल जाती है। लेकिन भारत की असली नवाचार की ताकत उन लाखों छोटी कंपनियों और युवा उद्यमियों में है जो उन्हें चलाते हैं। और वे वित्तीय, संचार और राजनीतिक बुनियादी ढांचे का निर्माण करने के लिए हम पर भरोसा कर रहे हैं ताकि वे अपने कौशल को वैश्विक कारोबार में बदल सकें।
21वीं सदी में स्वास्थ्य देखभाल में क्रांति होने जा रही है। आज, डॉक्टर आपकी जांच करता है, आपके आंकड़ों का विश्लेषण करता है और आपको बताता है कि आपके साथ क्या गड़बड़ है। यह सब उसकी याददाश्त पर टिका हुआ है। जब वह सेवानिवृत्त हो जाता है तो ये सारी जानकारी बर्बाद हो जाती है। आने वाले समय में, सारे मेडिकल आंकड़े डिजिटल होंगे और कंप्यूटर पर हासिल किये जा सकते हैं। दो कारक स्वास्थ्य सेवा में प्रतिस्पर्धा को निर्धारित करेंगे। पहला, देश में चलने वाली विभिन्न चिकित्सा प्रक्रियाएं और कार्यप्रणाली का तरीका और दूसरा, आपकी आबादी की आनुवंशिक विविधता। भारत का आकार इसे बहुत अधिक फायदा पहुंचायेगा। उदाहरण के लिए आज वास्तविकता ये है कि भारत में हर साल लाखों मोतियाबिंद ऑपरेशन या हृदय की शल्य-चिकित्सा होती है, इसका मतलब ये हुआ कि हम ये काम करने में सर्वश्रेष्ठ होंगे। लेकिन पैमाने पर ज्यादा महत्वपूर्ण भारत की समृद्ध आनुवंशिक विविधता होगी। पारस्परिक सांस्कृतिकता के हजारों सालों का मतलब है कि भारत में दुनिया की आनुवंशिक रूप से सबसे विविध आबादी है। अगर चिकित्सा प्रक्रियाएं डीएनए पर आधारित होने जा रही हैं, तो भारत की विविधता बड़ी वैश्विक संपत्ति होगी। इसलिए, अगर आप 21वीं सदी में चिकित्सा पद्धति को देख रहे हैं, तो अब तक, जबरदस्त शोध और नवाचार के लिए सबसे बेहतर अवसर भारत में मौजूद होंगे। यह जरूरी है कि हम निजता और स्वामित्व से जुड़ी महत्वपूर्ण चिंताओं के पैदा होने से पहले अभी से ही इनके समाधान और प्रणालियों के बारे में सोचना शुरु कर दें। ठीक से काम किया जाये तो यह भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को बदल सकता है और साथ ही साथ, हमारी सीमाओं से बाहर दुनिया को भी मदद कर सकता है।
21वीं सदी में स्वास्थ्य देखभाल में क्रांति होने जा रही है। आज, डॉक्टर आपकी जांच करता है, आपके आंकड़ों का विश्लेषण करता है और आपको बताता है कि आपके साथ क्या गड़बड़ है। यह सब उसकी याददाश्त पर टिका हुआ है। जब वह सेवानिवृत्त हो जाता है तो ये सारी जानकारी बर्बाद हो जाती है। आने वाले समय में, सारे मेडिकल आंकड़े डिजिटल होंगे और कंप्यूटर पर हासिल किये जा सकते हैं। दो कारक स्वास्थ्य सेवा में प्रतिस्पर्धा को निर्धारित करेंगे। पहला, देश में चलने वाली विभिन्न चिकित्सा प्रक्रियाएं और कार्यप्रणाली का तरीका और दूसरा, आपकी आबादी की आनुवंशिक विविधता। भारत का आकार इसे बहुत अधिक फायदा पहुंचायेगा। उदाहरण के लिए आज वास्तविकता ये है कि भारत में हर साल लाखों मोतियाबिंद ऑपरेशन या हृदय की शल्य-चिकित्सा होती है, इसका मतलब ये हुआ कि हम ये काम करने में सर्वश्रेष्ठ होंगे। लेकिन पैमाने पर ज्यादा महत्वपूर्ण भारत की समृद्ध आनुवंशिक विविधता होगी। पारस्परिक सांस्कृतिकता के हजारों सालों का मतलब है कि भारत में दुनिया की आनुवंशिक रूप से सबसे विविध आबादी है। अगर चिकित्सा प्रक्रियाएं डीएनए पर आधारित होने जा रही हैं, तो भारत की विविधता बड़ी वैश्विक संपत्ति होगी। इसलिए, अगर आप 21वीं सदी में चिकित्सा पद्धति को देख रहे हैं, तो अब तक, जबरदस्त शोध और नवाचार के लिए सबसे बेहतर अवसर भारत में मौजूद होंगे। यह जरूरी है कि हम निजता और स्वामित्व से जुड़ी महत्वपूर्ण चिंताओं के पैदा होने से पहले अभी से ही इनके समाधान और प्रणालियों के बारे में सोचना शुरु कर दें। ठीक से काम किया जाये तो यह भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को बदल सकता है और साथ ही साथ, हमारी सीमाओं से बाहर दुनिया को भी मदद कर सकता है।
भारत ने मानव परिवर्तन की बड़ी प्रक्रिया शुरू की है। भारत के परिवर्तन की प्रकृति अब एक ऐसे पड़ाव पर पहुंच चुकी है जहां ये क्षण इतना शक्तिशाली है कि इसकी विफलता अब कोई विकल्प नहीं है। हमारी सफलता दुनिया को प्रभावित करती है, लेकिन हमारे देश को असफल होना चाहिए, यह पूरे विश्व को हिला देगा। भारत 1.3 अरब लोगों को शांतिपूर्ण और विनम्र तरीके से और कम से कम दिक्कतों के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ने की कोशिश कर रहा है। लेकिन भ्रमित न हों। यदि यह प्रक्रिया टूट जायेगी, तो हिंसा की संभावना अधिक होगी।
मैंने आपको सकारात्मक बातें बतायी। लेकिन अपनी बात खत्म करने से पहले मुझे यह भी बताना चाहिए कि खतरनाक तरीके से गलत क्या हो सकता है। अब तक हमारी ताकत यही है कि हमने सारा काम शांतिपूर्वक किया है। हमारी गति को जो नष्ट कर सकता है वो है विपरीत ऊर्जा। नफरत से भरा हुआ गुस्सा और हिंसा तथा ध्रुवीकरण की राजनीति जिसने आज भारत में गंदे तरीके से सिर उठा लिया है। हिंसा और नफरत लोगों का ध्यान असली काम से भटका देती है। उदारवादी पत्रकारों को गोली मार दी जाती है, लोगों की हत्या कर दी जाती है क्योंकि वे दलित हैं, बीफ खाने के शक में मुसलमानों को मारा गया, ये सब भारत में नया है और भारत को बुरी तरह से नुकसान पहुंचा रहा है। नफरत की राजनीति भारत को बांटती है और ध्रुवीकरण करती है और भारत के लाखों लोग महसूस करते हैं कि उनके अपने ही देश में उनका कोई भविष्य नहीं है। आज एक दूसरे से जुड़ी हुई दुनिया में, यह बेहद खतरनाक है। यह लोगों को अलग-थलग करता है और उन्हें कट्टरपंथी विचारों के प्रति संवेदनशील बना देता है।
अंत में, भारत को सुनना बेहद महत्वपूर्ण है। आप जो चाहते हैं उन सभी का जवाब वो देगा। भारत के संस्थानों ने 70 वर्षों में हमारे देश की गहरी समझ बनाई है। हमारे पास प्रत्येक क्षेत्र में विशेषज्ञ हैं। भारत के जबरदस्त संस्थागत ज्ञान की उपेक्षा करना और तदर्थ फैसले लेना लापरवाही से भरा और खतरनाक कदम हो सकता है। नोटबंदी जैसे फैसलों ने रातों-रात चलन ने रही 86 प्रतिशत नकदी को खत्म कर दिया और इसे मुख्य आर्थिक सलाहकार, मंत्रिमंडल या यहां तक कि संसद से पूछे बिना मनमाने ढंग से लागू कर दिया गया, जिसकी भारत को विनाशकारी कीमत चुकानी पड़ी।
मौजूदा समय में हम पर्याप्त रोजगार पैदा नहीं कर रहे। 30,000 नये युवा प्रतिदिन रोजगार बाजार में शामिल हो रहे हैं और इसके बाद भी सरकार रोजाना केवल 500 नौकरियां पैदा कर पा रही है। और इसमें पहले से ही भारी संख्या में बेरोजगार युवाओं की तादाद शामिल नहीं है। आर्थिक विकास में गिरावट आज गंभीर चिंता का विषय है और इससे देश में गुस्सा पनप रहा है। सरकार की आर्थिक नीतियां, नोटबंदी और जल्दबाजी में लागू जीएसटी ने भारी नुकसान पहुंचाया है। नोटबंदी के चलते लाखों छोटे व्यवसायों का सफाया हो गया। नकदी पर निर्भर किसानों और मजदूरों पर तगड़ी मार पड़ी। कृषि गंभीर संकट में है और देशभर में किसानों की आत्महत्या का दौर जारी है। खुद पर किये गये नोटबंदी के प्रहार की चोट ने भारत की जीडीपी को लगभग 2 प्रतिशत का नुकसान पहुंचाया है। भारत वर्तमान दर पर आगे बढ़ने और रोजगार पैदा करने का काम नहीं कर सकता। यदि हम वर्तमान दर पर चलते रहे, अगर भारत ने रोजगार बाजार में आने वाले लाखों लोगों को रोजगार नहीं दिया तो इससे गुस्सा और बढ़ेगा और इसके चलते जो कुछ भी अब तक बनाया गया है वो नष्ट हो सकता है। यह भारत और बाकी दुनिया के लिए भी भयावह होगा।
धन्यवाद
धन्यवाद
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