‘‘आज, अर्थव्यवस्था लुढ़क रही है। जी हां ये तबाह हो सकती है। हमें अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए काफी सारे अच्छे काम करने की जरूरत है। यहां तक कि इस लुढ़काव को भी स्थिर किया जा सकता है। यदि कुछ नहीं किया गया तो हम भयावह मंदी की और बढ़ रहे हैं। यह बड़े पैमाने पर होगा... बैंक तबाह हो सकते हैं, कारखाने बंद हो सकते हैं।’’ ये शब्द न तो वामपंथी विचारधारा के अर्थशास्त्री के न तो किसी कांग्रेस राजनेता के हैं बल्कि ये तो नोटबंदी को स्मारकीय प्रबंधन विफलता और कानूनी लूट-खसोट बताने वाली पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की टिप्पणियों को सही साबित कर रहे हैं। स्वामी का मातम इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि भाजपा में भी आलोचनाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। स्वामी ने मोदी सरकार से वित्त मंत्रालय द्वारा की गयी वित्तीय गड़बड़ियों की छानबीन और सुधार करने का आग्रह किया। उन्होंने यह भी जोड़ा कि जीडीपी दर जो बतायी या दिखायी जा रही है उससे कहीं ज्यादा कम है, क्योंकि इसे मापने के तरीके बदल दिये गये हैं। कई राष्ट्रीय डाटाबेसों की सांख्यिकीय रिपोर्टों से पता चलता है कि देश की आर्थिक वृद्धि लगातार चौथी तिमाही में कम हुई है। लेकिन इसके बाद भी एनडीए सरकार अपनी जन-विरोधी नीतियों पर आगे बढ़ने से बाज नहीं आ रही है ।
पिछली एनडीए सरकार में वित्त मंत्री रहे भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने अपने एक लेख में लिखा है कि ‘‘नोटबंदी एक भयावह आर्थिक आपदा साबित हुआ, तो खराब ढंग से जल्दबाजी में लागू जीएसटी के कहर ने करोबार को बर्बाद कर दिया, लाखों लोगों का रोजगार छिन गया।’’ अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रो पर नोटबंदी और जीएसटी के बुरे असर पर भाजपा के भीतर से ही उठ रही आलोचनाओं के स्वर से पता चलता है कि मौजूदा आर्थिक मंदी कितने गहरे तक असर कर चुकी है। असहमति की आवाजों को दबाने और लोगों का ध्यान भटकाने के लिये एनडीए सरकार ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सहारा लिया लेकिन उसके बावजूद भी पार्टी के भीतर से उठ रही आवाजों को दबाया नहीं जा सका। सिन्हा ने प्रधानमंत्री और वित्त मंत्रालय दोनों की तरफ इशारा किया है। मोदी के नोटबंदी वाले फैसले ने औपचारिक और अनौपचारिक दोनों क्षेत्रों के लिए परेशानियां पैदा कर दीं। इसके बाद जल्दबाजी में जीएसटी लागू कर दिया गया। सिन्हा ने तर्क दिया कि सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को गहरी खाई में ढकेल दिया और इसके जल्दी उबरने की कोई संभावना नहीं दिख रही है। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में गिरावट का फायदा उठाने में वित्त मंत्री की अक्षमता पर सवाल उठाया। इसके अलावा, सिन्हा ने मोदी के नेतृत्व में नीतियों के कार्यान्वयन की कमियों को भी उजागर किया, इसमें से एक एनपीए के मुद्दे को सुलझाने में सरकार की घोर नाकामी से जुड़ा हुआ है जो हमारी अर्थव्यवस्था के लिए प्रमुख चुनौती बना हुआ है।
मौजूदा वित्तीय हालत के लिये नोटबंदी को सरकार की रणनीतिक भूल बताकर एस. गुरुमूर्ति ने भी आलोचनाओं के साथ अपना सुर मिलाया। उन्होंने रेखांकित किया कि सरकार के दिवालियापन कानून और जीएसटी जल्दबाजी में लागू करने तथा वित्त मंत्रालय और भाजपा के खुफिया प्रकोष्ठ के बीच संवादहीनता से काला धन रखने वाले कानून प्रवर्तन एजेंसियों के चंगुल से बचकर निकल गये।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. सिंह, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी सहित भाजपा के अपने वफादारों की सही सलाह को नजरअंदाज करना इस बात का संकेत है कि हमारा देश किस प्रकार से तानाशाही की तरफ बढ़ता जा रहा है। मोदी सरकार देश की आर्थिक आवश्यकताओं को समझने में नाकाम रही है। आम लोगों के लिये फायदेमंद नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय मोदी सरकार दिखावेबाजी पर ध्यान दे रही है।
No comments:
Post a Comment