प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ के जुमले को ‘द वायर’ में छपी एक खबर ने पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दिया। इस खोजी रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि मोदी जी ने अपनी नाक के नीचे हो रहे भ्रष्टाचार को किस तरह से पनपने दिया। रिपोर्ट में हुए खुलासे बेहद चौंकाने वाले हैं। लेकिन इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग इस बड़ी खबर को दबा गया। मुख्य विरोधी दल के तौर पर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे पर मीडिया को संबोधित किया। वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने मांग करी कि प्रधानमंत्री को अमित शाह के बेटे की कंपनी के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के आदेश देने चाहिए, कि उन्होंने भारी-भरकम फायदा हासिल करने के लिए अपने राजनीतिक रसूख और संबंधों का इस्तेमाल किया और फिर अचानक अपनी दुकान ही बंद कर दी। हालांकि, एनडीटीवी और एबीपी न्यूज को छोड़कर किसी भी बड़े समाचार चैनल ने इस संवाददाता सम्मेलन को लाइव कवरेज नहीं दिया।
ऐसा लगता है कि सरकार और सत्ताधारी दल के लोगों की मिलीभगत वाले इस भ्रष्टाचार की खबर को खास तवज्जो न दिये जाने को लेकर संपादकीय और मालिकान स्तर से फैसला किया गया। भारत में इंटरनेट के कम इस्तेमाल को देखते हुए अधिकांश समाचार चैनलों ने साजिशन और सत्ता के इशारे पर काम करने की वजह से ही इतने बड़े समाचार को कवर नहीं किया, ताकि बड़े पैमाने पर लोगों को इस खबर का पता ही न चले। द वायर द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट बेहद महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि, उसने देश को सच्चाई से रुबरु कराते हुए बताया कि खुद को ‘देश का चौकीदार’ बताने का दावा करने वाले व्यक्ति ने जो वादे किये थे, वो कितने खोखले हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को ट्वीट करके पूछा कि मोदी जी ‘चौकीदार थे या भागीदार’ थे।
सोमवार को जब समाचार पत्र निकले तो हालात आश्चर्यचकित करने वाले थे। मीडिया की आलोचना करने वाली वेबसाइट न्यूजलॉड्री द्वारा किए गए एक विश्लेषण के मुताबिक, दिल्ली के चार प्रमुख अंग्रेजी संस्करणों - द टाइम्स ऑफ इंडिया, द इंडियन एक्सप्रेस और हिंदुस्तान टाइम्स ने इस खबर को मुख्य पृष्ठ पर जगह दी, जबकि द हिंदू ने इसे पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। हालांकि, दक्षिण-पूर्व के समाचार पत्रों ने 8 अक्टूबर को ऑन लाइन तीन खबरों को प्रकाशित किया था। न्यूजलॉड्री विश्लेषण में आगे कहा गया है कि प्रमुख व्यापार दैनिकों में, मिंट ने पूरी तरह से खबर को दबा दिया। हालांकि, इकोनॉमिक टाइम्स ने पृष्ठ 2 के निचले भाग में इस खबर को छापा। सुर्खियों में द वायर के दावे की सच्चाई की तह में जाने की बजाय भाजपा द्वारा इसे खारिज करने की खबर पर ही ज्यादा जोर दिया गया।
ये इस बात का इशारा है कि कुछ न कुछ गड़बड़ है। ऐसा हो ही नहीं सकता कि समाचार पत्रों को खबर में कोई जान न दिखी हो। खबर दबाने के दो ही कारण हो सकते हैं, पहला स्व-प्रतिबंध दूसरा सरकार की तरफ से अत्यधिक दबाव। दोनों ही मामलों में कांग्रेस पार्टी मीडियाजनों के साथ मजबूती से खड़ी है, जो अकथ्य बाध्यताओं से बंधे हुए हैं। हम आशा व्यक्त करते हैं कि मीडिया हाउसों पर सरकार को मदद करने वाली खबरों को ही दिखाने के दबाव के बावजूद सच्चाई उजागर करने के प्रयास हमेशा जारी रहेंगे। अपनी निडर पत्रकारिता के जुर्म में द वायर के खिलाफ सत्ताधारी दल के लोगों की ओर से 100 करोड़ रुपये की मानहानि का मुकदमा किया गया है, इस संबंध में हम न्यायपालिका में अपने विश्वास को पुनः दोहराना चाहते हैं। निःस्संदेह, अदालत की परीक्षा में सच की जीत होगी। द वायर में प्रकाशित लेख रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के यहां दाखिल वार्षिक रिपोर्ट दस्तावेजों पर आधारित है और इसमें कोई मनगढ़ंत आरोप या लांछन नहीं लगाया गया है। जहां तक मानहानि के मामले का संबंध है तो इसका इतिहास खुद गवाह है। पत्रकार सुचेता दलाल के खिलाफ 100 करोड़ रुपये के मानहानि के दर्ज मामले को बाद में वापस लिया गया और उनको मुआवजा दिया गया। पत्रकार महेशवर पेरी के खिलाफ 100 करोड़ रुपये की मानहानि का मामला अदालत के सामने टिक ही नहीं सका।
अन्य बातों के अलावा, इस साल की शुरुआत में कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री गांधी ने जनवेदना सम्मेलन के दौरान कहा था कि कांग्रेस का प्रतीक चिन्ह ‘हाथ’ इस बात का आश्वासन भी है कि - ‘डरो मत’।’’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘मैं मीडिया के लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि वे जितना चाहे मेरे बारे में लिखें। न तो मैं आपको डराऊंगा न ही मैं आपके अधिकार (प्रेस की आज़ादी) छीनूंगा।’’
सभी धर्मों, जातियों, तथाकथित सामाजिक अनुक्रमों के लोगों का समर्थन और मदद प्रदान करने वाले एकछत्र संगठन के तौर पर कांग्रेस की सदियों पुरानी परंपरा रही है। श्री गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस हाशिए पर पड़े प्रत्येक समूह के लिए उसी आश्वासन के साथ दृढ़ता से डटी है कि ‘‘डरो मत, पार्टी मजबूती से आपके साथ है।’’ जिन पत्रकारों को महसूस होता है कि उन्हें न्यूजरुम में माहौल बनाकर दबाया जा रहा है उन्हें हम कहना चाहते हैं कि ‘डरो मत’। जब आपके साथ सच्चाई है तो फिर मानहानि के मुकदमे आपको रोक नहीं सकते। हमारा पूरा समर्थन आपके साथ है। हम आपके ‘‘लिखने के अधिकार के लिए संघर्ष करते रहेंगे।’’
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