भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में एक सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी कर इस बात की पुष्टि की है कि अर्थव्यवस्था को लेकर लोगों में निराशा का माहौल है और ये बेहद गंभीर स्तर पर पहुंच गया है। रिपोर्ट में बड़े पैमाने पर इस बात को लेकर हो रही आलोचनाओं की पुष्टि की गई है कि उपभोक्ताओं का मनोबल टूट रहा है, उत्पादन में गिरावट हो रही है, नौकरियां खत्म हो रही हैं और विकास दर नीचे गिर रही है।
सर्वेक्षण का शीर्षक उपभोक्ता विश्वास है और इसे आरबीआई द्वारा तिमाही आधार पर जारी किया गया है। भारत के छह प्रमुख शहरों बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई और नयी दिल्ली में यह सर्वे कराया गया। इसमें करीब 5100 लोगों से आम राय और आर्थिक स्थिति, रोजगार, महंगाई, निजी आमदनी और खर्च के संबंध में प्रतिक्रियाएं ली गयीं। सर्वे में मुख्य रूप से उत्तरदाताओं से दो बिंदुओं पर उनकी राय पूछी गयी एक साल पहले के मुकाबले आज के हालात और आने वाले एक साल में भविष्य की उनकी उम्मीदें। इसके बाद उन्हें संकलित करके वर्तमान स्थिति सूचकांक (सीएसआई) और भविष्य की उम्मीदें सूचकांक (एफईआई) की श्रेणी में बांट दिया गया। इसके बाद जो निष्कर्ष आया उसमें सीएसआई ‘निराशावादी क्षेत्र’ में और एफईआई में भी काफी गिरावट देखी गयी।
रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि आर्थिक परिदृश्य के संबंध में मौजूदा हालत पिछली चार लगातार तिमाहियों से ‘निराशाजनक’ रही है। इसमें कोई संदेह नहीं है क्योंकि लोग जीडीपी विकास में गिरावट का दंश महसूस कर रहे हैं। 2017 की दूसरी तिमाही में विकास दर सिर्फ 5.7 प्रतिशत थी। रिपोर्ट में जल्दबाजी में और बेतरतीब ढंग से जीएसटी लागू करने की आलोचना की गयी है और कहा गया है कि इससे भारत का विकास बेपटरी हो गया और अर्थव्यवस्था बुरी तरह से लड़खड़ा गयी। इसमें इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि मोदी जी ने काला धन निकालने के लिए जो नोटबंदी का फैसला लिया उसका कोई नतीजा नहीं निकला बल्कि इससे उपभोक्ता मांग में कमी आयी और अर्थव्यवस्था को भारी चोट पहुंची।
रोजगार को लेकर भी लोगों में भय का माहौल है। आरबीआई ने रोजगार की स्थिति का हवाला देते हुए कहा, ‘‘उत्तरदाताओं के लिए ये चिंता का सबसे बड़ा कारण था’’, लगभग 44 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि रोजगार के हालात बेहद खराब हुए हैं। हो सकता है कि रेल मंत्री श्री पीयूष गोयल, जिन्होंने हाल ही में हास्यास्पद टिप्पणियां की थीं, आरबीआई के ताजा निष्कर्षों पर गहरी निगाह रखेंगे। ब्लूमबर्ग का अनुमान है कि इस साल विनिर्माण नौकरियों में लगभग 30 प्रतिशत तक की कमी आयेगी और बताया है कि पारिश्रमिक संभावना पिछले 12 साल में सबसे कम है। आबादी में बढ़ोतरी के बावजूद भारत में मार्च 2014 की तुलना में मार्च 2016 में नौकरियों के अवसर में कमी आयी है। इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के मुताबिक ‘‘2014 और 2016 के बीच रोजगार में निरंतर गिरावट शायद स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार हो रही है।’’
आरबीआई के सर्वे में लगभग 27 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने आमदनी में गिरावट की बात कही। आरबीआई रिपोर्ट के मुताबिक कीमतों के स्तर को लेकर भी हाल के दिनों में लोगों में निराशा बढ़ी है। 83.2 प्रतिशत लोगों का कहना था उनको पिछले साल के मुकाबले इस साल ज्याद पैसा खर्च करना पड़ रहा है। खर्च में वृद्धि का सबसे बड़ा कारण मोदी सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल पर करों में लगातार बढ़ोत्तरी है। एक ताजा लेख में बताया गया है कि भारत में ईंधन की कीमतें सिंगापुर के मुकाबले दोगुनी के बराबर हैं। इसका मतलब यह है कि यदि सिंगापुर में ईंधन की कीमत 100 रुपये है तो वहां से थोक में ईंधन का आयात करने के लिए लगभग 200 रुपये खर्च होंगे। द हिंदू अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक करीब आधा पैसा टैक्स की भेंट चढ़ जाता है।
उपभोक्ता विश्वास पर आरबीआई की नयी रिपोर्ट ने सरकार द्वारा पेश सभी आशावादी दावों को झूठा साबित कर दिया है। हाल ही में मोदी जी ने अर्थव्यवस्था को लेकर विपक्षी दलों के ‘निराशावादी’ रवैये पर तंज कसा था, लेकिन यह रिपोर्ट कांग्रेस के उस रुख की पुष्टि ही करती है कि जनता भाजपा के झूठे आशावाद को साझा नहीं करती है।
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